दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरिवाल के अरेस्ट होने की खबर के साथ ही कुछ नए सवाल आए हैं। भारत मे यह पहली बार है की मुख्यमंत्री को पद पर रहते हुए अरेस्ट किया गया है। इसके पहले पाँच बार जब ऐसा मौका आया तब उन मुख्यमंत्रियों ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। आइए अब जानते हैं की ऐसी स्थिति मे जब अरविन्द केजरिवाल अरेस्ट होंगे, तो क्या वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे या फिर उनको इस्तीफा देना पड़ेगा?
क्या होता है मुख्यमंत्री के अरेस्ट होने बाद, संविधान मे क्या लिखा है?
दरअसल भारत के संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री के अरेस्ट होने पर वहाँ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, लागू हो जाता है। ऐसी स्थिति मे संविधान ने कई सारे नियम बनाए हैं जिसके बारे मे हम यहाँ बता रहे हैं। चूंकि आज की खबर अरविन्द केजरिवाल के बारे मे है तो उनको लेकर ही नियमों की चर्चा करेंगे।
क्या होता है लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 या फिर Representation of the People Act, 1951, वह नियमावली है जो बताती है की संसद के सदन, उसके बाहर भी अन्य विधानमंडल के या सदन के चुनावों के बारे मे, और उस सदन के लिए कौन योग्य है व कौन अयोग्य है इसके बारे मे निर्णय कैसे लिया जायेगा।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार क्या क्या होगा अरेस्ट के बाद सीएम अरविन्द केजरिवाल का?
- यदि केजरिवाल का आरोप साबित नहीं होता है तब वह सीएम बने रह सकते हैं। पर यदि उनका आरोप पूरी तरह साबित हो जाता है और वह कम से कम 2 साल के या उससे ज्यादा के लिए जेल जाते हैं, तो उस स्थिति मे उनका सीएम पद पर होना मुमकिन नहीं है।
- मुख्यमंत्री नीचले कोर्ट से सजा मिलने पर उसे उच्च और सर्वोच्च न्यायायल मे चुनौती दे सकते हैं। यदि जिस कोर्ट ने सजा दी है, उससे ऊपर के कोर्ट मे उस सजा पर रोक लगा दी जाती है और फिरसे उसपर चर्चा करने का प्रावधान सामने आता है, तो उस स्थिति मे फिर से केजरिवाल मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं।
हालांकि अधिकतर राजनीति मे मिलने वाले दबाव, आम जनता मे क्या मैसेज जाता है वह, और अन्य सामाजिक असर को देखते हुए, यह बहुत सामान्य है की केजरिवाल शायद इस्तीफा दे दें। परंतु उनकी पार्टी का अभी तक यह बयान है की केजरिवाल ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
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